



#happyChhathPuja






•तिथि :
18 नवंबर 2020, बुधवार- चतुर्थी (नहाय-खाय)।
19 नवंबर 2020, गुरुवार- पंचमी (खरना)।
20 नवंबर 2020, शुक्रवार- षष्ठी (डूबते सूर्य को अर्घ)।
21 नवंबर 2020, शनिवार- सप्तमी (उगते सूर्य को अर्घ)।
•मुहूर्त :
षष्ठी को सूर्यादय 06:48 बजे और सूर्योस्त 05:26 बजे पर होगा। षष्ठी तिथि 19 नवंबर को रात 09:59 बजे से प्रारम्भ होगी जो 20 नवंबर को रात 09:29 बजे तक रहेगी।
•विशेष :
अलग अलग स्थानों पर समय में परिवर्तन होता है, इसलिए सटीक समय के लिए अपनी स्थानीय समय सारणी देखें।
षष्ठी को सूर्यादय 06:48 बजे और सूर्योस्त 05:26 बजे पर होगा। षष्ठी तिथि 19 नवंबर को रात 09:59 बजे से प्रारम्भ होगी जो 20 नवंबर को रात 09:29 बजे तक रहेगी।
•विशेष :
अलग अलग स्थानों पर समय में परिवर्तन होता है, इसलिए सटीक समय के लिए अपनी स्थानीय समय सारणी देखें।







अर्थात शुद्ध, शाकाहारी भोजन।
बिहार में गुड़ की खीर एवं कद्दू की खीर का विशेष चलन है। पंचमी को खरना के साथ लोहंडा भी होता है जो सात्विक आहार से ही जुड़ा पर्व है।
कहते हैं भोजन से ही भजन हो सकता है। क्यूँ कि, भोजन ही हमारी विचारधारा का निर्माण करता है। अर्थात,...


जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन।
षष्ठी पूजा-निर्जला व्रत-
षष्ठी तिथि को व्रती (व्रत का परायण करने वाला) को निर्जला व्रत रखना होता है। यह व्रत 'खरना' (पंचमी) की शाम से ही शुरू होता जाता है।
षष्ठी तिथि के दिन शाम को डूबते हुये सूर्य को अर्घ देकर व्रत का पूजन करते हैं।











ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठ मइया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।


नवरात्रों में षष्ठी तिथि को हम इनका पूजन प्रार्थना करते हैं।
सर्वप्रथम किसने की छठ माता की पूजा :
सर्वप्रथम देव माता अदिति ने छठ देवी की पूजा की थी।
मत्स्य पुराण के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने.....



तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के 'देव सूर्य मंदिर' (बिहार) में छठी मैया की आराधना की थी। इसलिये, यह बिहार का अति प्राचीन, वैदिक पर्व है।
कौन हैं माता अदिति -
देवी अदिति, दक्ष प्रजापति की पुत्री, देवी 'सती' की बहन एवं कश्यप ऋषि की पत्नी हैं।





"विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥" 

उनके मातृत्व का विवरण अथर्ववेद (7.6.2) और वाजसनेयिसंहिता (21,5) में भी प्राप्त होता है।
सूर्य के पूजन का महत्त्व; (ज्योतिषीय एवं खगोलीय गणनायें) -
सूर्य देव को प्राणों का देवता कहा जाता है।





सूर्य देव आत्मा के कारक ग्रह हैं।
सूर्य की उपासना का वर्णन ऋग्वेद, विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में मिलता है।
वैज्ञानिकों की दृष्टि से षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है।
इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर.....



सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं।
इस व्रत के प्रभाव से, प्राकर्तिक परिवर्तन के दुष्प्रभावों से मानव जीवन की रक्षा करने का बल एवं शक्ति प्राप्त होती है।
खगोल विज्ञान के अनुसार समस्त ग्रहों एवं उपग्रहों की ऊर्जा का श्रोत सूर्य को ही माना जाता है।





निहित होती है। किन्तु, खगोलीय परिवर्तन से अभी स्थिति बहुत बदल गई।
सूर्य पृथ्वी पर विटामिन 'D' का एक मात्र प्राकर्तिक श्रोत है। हमारे शरीर में हड्डियों के निर्माण में इसका विशेष महत्त्व है।
इसलिये, सूर्य को हड्डियों का कारक ग्रह भी माना जाता है।



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