किसान परिवार से हूँ, 25 साल की उम्र तक खेती के सारे कार्य किए जिनमें सर्द रातों में खेतों में पानी देना, गर्मियों में फसल काटने से लेकर गेहूं तूड़ी को ढोने और कमरे में भरना शामिल है
फिर आफिसर के तौर पर बैंक join किया, 15 साल हो गए, बहुत कुछ देख लिया, बहुत बदलाव देख लिए,
जो हो गए वो भी और कुछ जो होने वाले हैं वे भी। शुरू में अपना परिचय इसलिए दिया कि कोई ये ना समझे कि जिस पर बितती है वही जानता है
सब अपने पर सहा है और विषय की पूरी समझ है इसलिए आपसे संवाद कर रहा हूँ
Wage revision जब pending था तब बैंकर्स hyper active थे social media, फिर ठंडे हो गए
पिछले 3-4 दिन से फिर जाग गए हैं जब से खबर आयी है कि बजट में कुछ बैंक प्राइवेट हो सकते हैं
मैं कह सकता हूँ कि बैंकर्स नेतृत्व विहीन हैं और अपने आप में भटके हुए हैं
चाय चुटकलों से लेकर धार्मिक मुद्दों पर आपस में उलझ जाते हैं और दरार पैदा कर लेते हैं
उन्हें ये नहीं समझ आता कि
आप यहाँ अपना अस्तित्व (नौकरी- तनख्वाह) बचाने के लिए एकजुट हुए हो, धर्म के ठेकेदार तो और बहुत हैं, तुम्हारी बात करने वाला और कौन है
समझदारी इसी में है कि हम मूल विषय से ना भटके
पिछले कुछ सालों में देश में बहुत परिवर्तन आये, कुछ अच्छे कुछ खराब, पिछले कुछ समय के माहौल ने देश की
जनता को मुख्य तौर पर दो हिस्सों में बांट दिया, एक जो सत्ता के हिमायती थे और दूसरे जो विरोधी थे
देश में बहुत कुछ होता रहा, अल्पसंख्यको पर हमले हुए, महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार हुए, स्वायत्त संस्थाएँ स्वायत्त नही रही, सार्वजनिक संस्थान बिकने लगे, मगर बैंकर्स ने संगठित होकर कभी
इनके खिलाफ आवाज नही, वे सत्ता के हिमायती या विरोधी होकर बँटे रहे
वे आने वाला कल नही देख पाए कि जो आज किसी और के साथ हो रहा है निश्चित तौर पर वो कभी आपके साथ भी होगा
बैंकर्स की एक और समस्या है उन्हें अपने शीर्ष नेतृत्व पर तनिक भी भरोसा नही है क्योंकि युवा व वृद्ध के बीच
कोई संवाद नही है। युवा बैंकर्स सारी समस्याओं का हल सोशल मीडिया के माध्यम से चाहता है और वृद्ध बैंकर्स सोशल मीडिया से कोसों दूर है
युवा बैंकर्स "राजनीति में नही पड़ना चाहता", मगर घर बैठा समस्याओं का हल चाहता है
कुछ बातें कालजयी सत्य हैं, कीचड़ साफ़ करना है तो
कीचड़ में उतरना पड़ेगा। आपने किसान आन्दोलन से कुछ तो सीखा होगा
समस्या का हल चाहिए तो सड़कों पर उतरना होगा, सर्दी- गर्मी, बरसात, गालियाँ, इल्ज़ाम, आँसू गैस, लाठियां, पत्थर, गोलियां झेलनी होगी
नेता कभी किताब से नही निकलते, लाठियां खा कर नेता पैदा होते हैं
बदलाव कभी आसानी से नही आते, मुसीबतें सहने वाले नेता ही बदलाव ला सकते हैं। जब आप सड़क पर उतरोगे तो सोशल मीडिया पर आपकी आवाज भी सुनी जाएगी
वक्त बहुत तेजी से भाग रहा है कोई सुरक्षित नही है सबका नंबर आएगा, तय आपने करना है कि शुरुआत कब करना है
ज़्यादातर सार्वजनिक संस्थान नीलाम हो गए हैं, पीछे कम बचे हैं आपका नंबर कभी भी आ सकता है
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